उम्मीद का तारा दूर गगन में , है सबको दिखता
लेकिन क्या वो तारा है मुझको तकता ?
जब भी देखूँ टिमटिमाते उसको
आस करे गुदगुदी मुझको
मानो आस हो उम्मीद की सखी
संग संग जो खेले आँख मिचौली |
थाम कर हाथ आस का, जाऊं मैं उम्मीद को पकड़ने
चालाक उम्मीद बैठे छिप के खिड़की के पीछे
दबे पाँव आस संग ढूँढूं मैं उम्मीद को
बैठे जो दूर गगन में खिड़की के पीछे
ज्यों ही खोलू मैं खिड़की
त्यों ही उम्मीद मुस्कुराये
और आस हिलौरें खाए |
तकूँ जब मैं दूर बैठी उम्मीद को
जानू मैं कही तो है इसको देखा पहले
घुमा के नज़र देखूं जब आस को
तो पाऊँ ये तो है कुछ उम्मीद-सी
आस लगे उम्मीद की परछाई |
समझ आये कुछ देर के बाद
ओ बुद्धू ! ये उम्मीद ही तो है आस
जो आस है, वही तो है उम्मीद
जो लगे दूर वो सच में है पास
बस नजरिये की है बात |
आज मिल कर उम्मीद-सी आस से
या यूँ कहूँ आस-सी उम्मीद से
हो रही है बहुत ख़ुशी
क्यूंकि जिसको ढूंढा गली गली
मिली वो मुझको अपनी गली |
Öbrìgadò!
JJJ