बहुत दिनो से बंद था एक दरवाज़ा
यही इसी कोने वाले कमरे का
रोज़ गुजरती थी उसके आगे से
लेकिन बस देख के नज़रअंदाज़ कर देती थी
देखा- अनदेखा करने की ये लुक्का छिपी
चल रही थी बहुत दिनो से
आज सोचा क्यूँ ना एक तरफ़ा चल रहे इस खेल में
हो जाउँ शामिल मै भी
खोल दिया मेने वो बंद दरवाज़ा
लेकिन थप्पा देने के लिए कोई और ना था
बस थी कुछ बीती यादें
कहती कुछ सुलझी उनसुलझी बातें
हर तस्वीर से झाँक रहे थे तुम
मै भी थी उनमे
जीभ निकल उसे बिगाड़ने की
नाकाम कोशिश करते हुए
एक धूल चाटता बक्सा भी था
खोला जब उसे तो चर - चरी सी आवाज़ करते हुए उठा गहरी नींद से वो
रखी थी वो सारी किताबें जो तुम मुझे देते थे पढ़ने के लिए
और मै रख दिया करती थी उन्हे इस बक्से में
कभी खुली भी नही थी ये किताबें
आज भी बिलकुल नयी- सी दिख रही थी
बस पन्ने पीले पड़ गये थे
सोचा अधूरी गुफ्तगू कर लेती हू आज पूरी
उठाई एक नयी-सी पुरानी किताब और पलटने लगी उसके पीले पन्ने
कथा परी कथा जान पड़ रही थी
पर कुछ जानी पहचानी सी लग रही थी
कमजोर याददाश्त पर डाला जब ज़ोर
तो याद आया यही कहानी तुम्हे सबसे अज़ीज़ थी
जब तब सुनाते रहते थे तुम इसके अंश
जब आख़िरी पन्ना पलटा मेने
तो मुख्या पात्रा के नाम पे था एक गोला
काट के उसका नाम लिखा था तुमने मेरा नाम
तुम्हारी लिखावट पहचानती हू मै आज भी
खुले दरवाज़े से झाकंती रोशनी
चली आई अंदर दबे पाँव
देखना चाहती थी वो भी
दरवाज़े के पीछे मक्कड़ जाल
छोड़ दिया खुला मेने वो कमरा
खोल दिया मेने वो दरवाज़ा |
Öbrìgadò!
JJJ